तिरे दर्द से जिस को निस्बत नहीं है वो राहत मुसीबत है राहत नहीं है जुनून-ए-मोहब्बत का दीवाना हूँ मैं मिरे सर में सौदा-ए-हिकमत नहीं है तिरे ग़म की दुनिया में ऐ जान-ए-आलम कोई रूह महरूम-ए-राहत नहीं है मुझे गरम-ए-नज़्ज़ारा देखा तो हँस कर वो बोले कि इस की इजाज़त नहीं है झुकी है तिरे बार-ए-इरफ़ाँ से गर्दन हमें सर उठाने की फ़ुर्सत नहीं है ये है उन के इक रू-ए-रंगीं का परतव बहार-ए-तिलिस्म-ए-लताफ़त नहीं है तिरे सरफ़रोशों में है कौन ऐसा जिसे दिल से शौक़-ए-शहादत नहीं है तग़ाफ़ुल का शिकवा करूँ उन से क्यूँकर वो कह देंगे तू बे-मुरव्वत नहीं है वो कहते हैं शोख़ी से हम दिलरुबा हैं हमें दिल नवाज़ी की आदत नहीं है शहीदान-ए-ग़म हैं सुबुक रूह क्या क्या कि उस दिल पे बार-ए-नदामत नहीं है नमूना है तक्मील-ए-हुस्न-ए-सुख़न का गुहर बारी-ए-तबा-ए-हसरत नहीं है