तिरे दीदार के सारे मराहिल से ज़रा पहले करूँगा मशवरा भी बद्र-ए-कामिल से ज़रा पहले समुंदर पार करने की ख़ुशी में इस क़दर कूदा कि कश्ती हो गई ग़र्क़ाब साहिल से ज़रा पहले लगी अख़बार की सुर्ख़ी जो कानों में तो जाग उट्ठा किसी सूरत लगी थी आँख मुश्किल से ज़रा पहले मुझे आग़ोश में लेने से पहले काँपता दरिया पुकारा होता तुम ने काश साहिल से ज़रा पहले ग़लत अंदाज़ा था ख़रगोश का कछवे के बारे में पहुँचना है पहुँच जाएँगे काहिल से ज़रा पहले सवाल-ए-हक़-परस्ती पर ये बोले हज़रत-ए-वाइज़ निपटने दीजिए मुझ को तो जाहिल से ज़रा पहले यक़ीं पैहम जो होता 'नज़्र' उस की पासबानी का न रुकते आप के फिर पाँव साहिल से ज़रा पहले