तिरे फ़लक पे कहीं मेरा माहताब नहीं वो रौशनी का वसीला तिरे जनाब नहीं गँवा चुका है तू साक़ी-ए-हौज़-ए-कौसर को कि तेरे ज़र्फ़ में अब तक शराब-ए-नाब नहीं तिरी ज़बान पे अल्लाह-हू का ना'रा है तिरे शिआ'र में अल्लाह की किताब नहीं तू रो रहा है बिना मक़्सद-ए-हुसैनी के तिरी अज़ा में कहीं ज़ैनबी-निसाब नहीं तिरी निगाह-ए-तलबगार दीद-ए-मेहदी है तिरे इरादे में गर्मी-ए-इंक़लाब नहीं तिरी ज़मीन पे ताग़ूत की हुकूमत है तिरे मिज़ाज में बू-ज़र का इज़्तिराब नहीं जो रेग-ज़ार को ज़रख़ेज़-ओ-ज़रफ़िशान करे तिरे वजूद के सहरा पे वो सहाब नहीं