तिरे हुज़ूर जो दो-चार दिन गुज़ार आया वो फ़ैज़-याब हुआ आक़िबत सँवार आया नसीब वाले हैं वा'दे वफ़ा हुए जिन के हमारे नाम जो आया तो इंतिज़ार आया चला तो चलता गया इक जुनून मंज़िल में अगरचे रास्ता पुर-संग-ओ-ख़ार-दार आया मैं आज आया हूँ ख़ास आप के बुलावे पर अगरचे बज़्म में पहले भी बार बार आया मिरा चमन रहा सदियों से अम्न का मेहवर ये कौन आया कि हर सम्त इंतिशार आया हमारे घर ही न आया तो फिर बला से मिरी हज़ार बार अगर मौसम-ए-बहार आया छुड़ा के हाथ गया 'नज़्र'-ए-गुल के मौसम में कली को ठण्ड लगी पूछने को ख़ार आया