तिरे ख़याल को भी फ़ुर्सत-ए-ख़याल नहीं जुदाई हिज्र नहीं है मिलन विसाल नहीं मिरे वजूद में ऐसा समा गया कोई ग़म-ए-ज़माना नहीं फ़िक्र-ए-माह-ओ-साल नहीं उसे यक़ीन के सूरज से ही उभरना है वो सैल-ए-वहम में बहता हुआ जमाल नहीं दहक उठे मिरे आरिज़ महक उठीं साँसें फिर और क्या है अगर ये तिरा ख़याल नहीं न-जाने कितने जहाँ मुंतज़िर हैं तेरे लिए तिरे उरूज की पहले कहीं मिसाल नहीं