तिरे ख़याल से दिलचस्पियाँ बनाते हैं वरक़ पे दिल के चलो तितलियाँ बनाते हैं सफ़र हयात का बेहद हसीन गुज़रेगा अना को मार के बैसाखियाँ बनाते हैं मैं जानता हूँ ये दरिया नहीं है सहरा है तो रेत पर ही चलो मछलियाँ बनाते हैं उठा ही ली है जो दीवार तुम ने आँगन में तो भाई इस में चलो खिड़कियाँ बनाते हैं खुलेगा इस तरह क़िस्मत का बंद दरवाज़ा जो काविशों की अगर चाबियाँ बनाते हैं हमारी राह में हाइल हुई है जो 'ख़ालिद' उसी चटान से अब सीढ़ियाँ बनाते हैं