तिरे कूचे में जो बैठा है पागल वो दिल से हाथ धो बैठा है पागल तसव्वुर में तुम्हारा साथ पा कर लो अपने होश खो बैठा है पागल तिरी ख़ुश्बू जिधर को जा रही है उसी जानिब ही तो बैठा है पागल ज़माने पर तो खुल कर हँस रहा था तिरे छूते ही रो बैठा है पागल इशारे इश्क़ की मौजों के पा कर बदन-कश्ती डुबो बैठा है पागल तआ'रुफ़ यूँ मिरा देती है दुनिया चले जाओ कि वो बैठा है पागल सुख़न-वर फ़िक्र के लम्हों में अक्सर लगे है यूँ कि गो बैठा है पागल तुम्हारे दर पे कितनी मुद्दतों से निगाहें फेर लो बैठा है पागल मिरी आँखों के ज़ीने से उतर कर मिरा दामन भिगो बैठा है पागल