तिरे लब-बिन है दिल में शोला-ज़न मुल जिस को कहते हैं नशे की मौत की हिचकी है क़ुलक़ुल जिस को कहते हैं जो पूछे इत्तिहाद-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ उस को नज़र आवे कि निकला बैज़ा-ए-ग़ुंचा से बुलबुल जिस को कहते हैं ऐ माली ख़ारिज आहंगी न कर साज़-ए-मोहब्बत में दिल-ए-बुलबुल है टूटा ख़ूँ हुआ गुल जिस को कहते हैं गुज़रने का सबब है ज़िंदगी के आब से पीरी क़दम ख़म है मुहीत-ए-उम्र का पुल जिस को कहते हैं बजा होते हैं 'उज़लत' दिल कबाब इन इश्क़-बाज़ों के धुआँ है हुस्न की आतिश का काकुल जिस को कहते हैं