तिरे रास्तों से जभी गुज़र नहीं कर रहा कि में अपनी उम्र अभी बसर नहीं कर रहा कोई बात है जो है दरमियाँ मैं रुकी हुई कोई काम है जो मैं रात-भर नहीं कर रहा है कोई ख़बर जो छिपाए बैठा हूँ ख़ल्क़ से कोई ख़्वाब है जिसे दर-ब-दर नहीं कर रहा तिरी बात कोई भी मानता नहीं शहर में तो मिरा कहा भी कहीं असर नहीं कर रहा कहीं मेरे गिर्द-ओ-नवाह में कोई शय नहीं मैं किसी तरफ़ भी अभी नज़र नहीं कर रहा कोई शाख़ है जिसे बर्ग-ओ-बार नहीं मिले कोई शाम है जिसे मैं शजर नहीं कर रहा कोई इस पे ग़ौर अगर करे भी तो किस लिए ये सुख़न मैं आप भी सोच कर नहीं कर रहा अभी मेरी अपनी समझ में भी नहीं आ रही मैं जभी तो बात को मुख़्तसर नहीं कर रहा ये मैं अपने ऐब जो कर रहा हूँ अयाँ 'ज़फ़र' तो दर-अस्ल ये भी कोई हुनर नहीं कर रहा