तिरे रुख़ का किसे सौदा नहीं है गुल-ए-लाला तलक सहरा-नशीं है फिरा है आप वो मह-रू हमारा तिरा ऐ आसमाँ शिकवा नहीं है कहीं ऐसा न हो उट्ठे न तलवार यही डर है कि क़ातिल नाज़नीं है न पूछो मेरे आँसू तुम न पूछो कहेगा कोई तुम को ख़ोशा-चीं है अदब से पा-बरहना फिरते हैं हम जुनूँ फ़र्श-ए-इलाही ये ज़मीं है बुरा सब दुश्मनों का चाहते हैं मैं ख़ुश हूँ जैसे दिल अंदोह-गीं है रहे मज़मून-ए-ग़म की तरह इस में हमारा घर है या बैत-ए-हज़ीं है जहाँ है जल्वा-गर वो ग़ैरत-ए-माह इलाही आसमाँ है या ज़मीं है बनाया तुझ को ऐसा ख़ूबसूरत कि नाज़ाँ तुझ पे सूरत-आफ़रीं है हैं इश्क़-ए-ज़ुल्फ़ में आ'ज़ा भी दुश्मन हमारा हाथ मार-ए-आस्तीं है न निकला बे तिरे मैं घर से बाहर निगह तक चश्म में ख़ल्वत-नशीं है फ़लक जो चाहे हम पर ज़ुल्म कर ले अभी तो ज़ब्त-ए-आह-ए-आतिशीं है पड़ा है तफ़रक़ा बे-ताबियों से 'वज़ीर' अब मैं कहीं हूँ दिल कहीं है