तिरी जानिब से दिल में वसवसे हैं ये कुत्ते रात भर भोंका किए हैं लिबास-ए-दर्द भी हम ने उतारा ये कपड़े अब पुराने हो चुके हैं उतारें केंचुली अब तल्ख़ जज़्बात कि वो अपने में घुट कर रह गए हैं न हो मायूस ख़ुश्क आँखों से ऐ दिल कि सहराओं में भी दरिया बहे हैं 'सलीम' अच्छी ग़ज़ल है तेरी माना मगर ये फूल घूरे पर खिले हैं