तिरी नज़र के इशारों से खेल सकता हूँ जिगर-फरोज़ शरारों से खेल सकता हूँ तुम्हारे दामन-ए-रंगीं का आसरा ले कर चमन के मस्त नज़ारों से खेल सकता हूँ किसी के अहद-ए-मोहब्बत की याद बाक़ी है बड़े हसीन सहारों से खेल सकता हूँ मक़ाम-ए-होश-ओ-ख़िरद इंतिक़ाम-ए-वहशत है जुनूँ की राह-गुज़ारों से खेल सकता हूँ मुझे ख़िज़ाँ के बगूले सलाम करते हैं हया-फ़रोश चनारों से खेल सकता हूँ शराब ओ शेर के दरिया में डूब कर 'साग़र' सुरूर-ओ-कैफ़ के धारों से खेल सकता हूँ