तिरी सम्त जाने का रास्ता नहीं हो रहा रह-ए-इश्क़ में कोई मो'जिज़ा नहीं हो रहा कोई आइना हो जो ख़ुद से मुझ को मिला सके मिरा अपने-आप से सामना नहीं हो रहा तू ख़ुदा-ए-हुस्न-ओ-जमाल है तो हुआ करे तेरी बंदगी से मिरा भला नहीं हो रहा कोई रात आ के ठहर गई मिरी ज़ात में मिरा रौशनी से भी राब्ता नहीं हो रहा उसे अपने होंटों का लम्स दो कि ये साँस ले ये जो पेड़ है ये हरा-भरा नहीं हो रहा