तिरी शिकस्त का एलान तो नहीं करेंगे जो तेरा काम है दरबान तो नहीं करेंगे सियाह-रात के आँगन में कूद कर हम लोग दिए जलाएँगे नुक़सान तो नहीं करेंगे मैं अपनी ज़ात की हैरत-सरा से गुज़रा हूँ ये तजरबे मुझे हैरान तो नहीं करेंगे ये ठीक है कि ज़रूरी है कार-ए-गिर्या भी मगर ये हिज्र के दौरान तो नहीं करेंगे ये सोचना था तुम्हें दाएरे बनाते हुए ये पेच तुम को परेशान तो नहीं करेंगे 'ज़हीर' उस की रगों को लहू पिला कर हम ज़मीन पर कोई एहसान तो नहीं करेंगे