तिरी सूरत मुझे बताती है याद मेरी तुझे भी आती है उस के इक बार देखने की अदा दिल में सौ हसरतें जगाती है मेरे दिल में वो आए हैं ऐसे जैसे आँगन में धूप आती है ख़्वाब में जब भी देखता हूँ उसे नींद आँखों से रूठ जाती है अपनी मर्ज़ी से हम नहीं चलते कोई ताक़त हमें चलाती है हम हैं तहज़ीब के अलम-बरदार हम को उर्दू ज़बान आती है मैं तो साहिल हूँ मौज दरिया की मुझ को ख़ुद ही गले लगाती है