तिरी तलब में यहाँ तक ख़राब हाल हुआ कि मैं जहान-ए-मोहब्बत में इक मिसाल हुआ मिरे क़रीब से अक्सर वो इस तरह गुज़रा निगाह भर के उसे देखना मुहाल हुआ वो लोग जिन की रिफ़ाक़त कभी न रास आई हुए जो दूर तो दिल को बहुत मलाल हुआ मुझे ख़बर है कि वो पेशतर न था ऐसा मिरी वफ़ा से जफ़ा का उसे ख़याल हुआ दुखों से अपनी तबीअ'त थी किस क़दर बोझल बरस गईं ये घटाएँ तो जी बहाल हुआ तवील थे जो वही फ़ासले सिमट से गए मिरा शरीक-ए-सफ़र जब तिरा ख़याल हुआ गुज़रने वालों के क़दमों से पाएमाल हुआ मैं एक नक़्श-ए-सर-ए-रह-गुज़ार था 'ख़ावर' गुज़रने वालों के क़दमों से पाएमाल हुआ