तिरी तलब ने फ़लक पे सब के सफ़र का अंजाम लिख दिया है किसी को नज्म-ए-सहर किसी को सितारा-ए-शाम लिख दिया है ज़बाँ पे हर्फ़-ए-मलाल क्यूँ हो कि हम हैं राज़ी तिरी रज़ा पर तिरा करम तू ने आब-ओ-दाना अगर तह-ए-दाम लिख दिया है बचा के अपने लिए न रक्खा कोई गरेबाँ का तार हम ने जुनूँ से जो कुछ भी हम ने पाया वो सब तिरे नाम लिख दिया है निगाह बाज़ार पर नहीं थी वगर्ना क्यूँ चारा-साज़-ए-ग़म ने मरीज़ के नुस्ख़ा-ए-शिफ़ा में ख़ुलूस का जाम लिख दिया है ये किस के ख़ामे का है नविश्ता कि बुल-हवस ऐश कर रहे हैं नसीब-ए-अहल-ए-नज़र में किस ने हुजूम-ए-आलाम लिख दिया है जहान-ए-हर्फ़-ओ-सदा में चर्चा न क्यूँ हो 'गुलज़ार' ख़ास तेरा तिरे लिए तेरी ख़ुश-नवाई ने शोहरा-ए-आम लिख दिया है