तिरी तलाश तो क्या तेरी आस भी न रहे अजब नहीं कि किसी दिन ये प्यास भी न रहे हर एक सम्त ख़ला ही ख़ला नज़र आएँ ख़राबा-ए-दिल-ए-वीराँ में यास भी न रहे ग़म-ए-फ़िराक़ की तल्ख़ी वो दश्त है कि जहाँ कोई क़रीब तो क्या आस-पास भी न रहे तिरा ख़याल ही पर तोल कर उड़ा ले जाए कोई उमीद शरीक-ए-हवास भी न रहे तमाम रंग है ख़ुश्बू तमाम ख़ुश्बू रंग गुलों से रंग उड़ा लें तो बास भी न रहे लुटा है क़ाफ़िला-ए-आगही दो-राहे पर ज़माना-साज़ तो क्या ख़ुद-शनास भी न रहे किसी तरीक़ से 'शहज़ाद' दिल को समझा लें न मुस्कुराए मगर यूँ उदास भी न रहे