तिश्नगी दर्द थकन सोज़-ए-जिगर रखता है इक मुसाफ़िर कई सौग़ात-ए-सफ़र रखता है ये अजब दौर-ए-तरक़्क़ी है कि इंसाँ हर पल ख़ुद से ग़ाफ़िल है मगर सब की ख़बर रखता है वो जो ना-वाक़िफ़ आदाब-ए-वफ़ा है वो भी जज़्ब-ए-इश्क़ तह-ए-क़ल्ब-ओ-जिगर रखता है काम लेता है जो हालात की नाकामी से अपने दामन में वही फ़त्ह-ओ-ज़फ़र रखता है मेरे मालिक मुझे दरकार नहीं तूल-ए-हयात उम्र दे उस को जो जीने का हुनर रखता है जाने क्या कह दिया उस ने दम-ए-रुख़्सत मुझ से उस का हर लफ़्ज़ क़यामत का असर रखता है तेरे अहबाब से अच्छा तिरा दुश्मन 'मेराज' तेरे बारे में जो पल पल की ख़बर रखता है