तिश्नगी ने सराब ही लिक्खा ख़्वाब देखा था ख़्वाब ही लिक्खा हम ने लिक्खा निसाब-ए-तीरा-शबी और ब-सद आब-ओ-ताब ही लिक्खा मुंशियान-ए-शुहूद ने ता-हाल ज़िक्र-ए-ग़ैब-ओ-हिजाब ही लिक्खा न रखा हम ने बेश-ओ-कम का ख़याल शौक़ को बे-हिसाब ही लिक्खा दोस्तो हम ने अपना हाल उसे जब भी लिक्खा ख़राब ही लिक्खा न लिखा उस ने कोई भी मक्तूब फिर भी हम ने जवाब ही लिक्खा हम ने इस शहर-ए-दीन-ओ-दौलत में मस्ख़रों को जनाब ही लिक्खा