तिश्ना-कामों को यहाँ कौन सुबू देता है गुल को भी हाथ लगाओ तो लहू देता है नेश्तर और सही कार-ए-दिगर और सही दिल-ए-सद-चाक अगर इज़्न-ए-रफ़ू देता है ताब-ए-फ़रियाद भी दे लज़्ज़त-ए-बेदाद भी दे देने वाले जो मुझे सोज़-ए-गुलू देता है हम तो बर्बाद हुए बर्ग-ए-ख़िज़ाँ की सूरत शाख़-ए-गुल कौन तुझे ज़ौक़-ए-नुमू देता है मुनसिफ़ो हाथ से अब दशना-ओ-ख़ंजर रख दो क्या बुरा है अगर इंसाफ़ अदू देता है ऐ ख़ुदावंद मिरे शेर की क़ीमत क्या है एक रोटी का निवाला जिसे तू देता है