तितलियों की हसीन संगत से फूल खिलने लगे हैं निकहत से ऐसा गुज़रा है इक ज़माना भी मैं भी चाहा गया था शिद्दत से टूट जाने के बावजूद ये दिल बाज़ आया नहीं मोहब्बत से शे'र होता है दाद मिलती है 'जौन' 'मोहसिन' 'फ़राज़' 'सरवत' से ये मुझे आज कल हुआ क्या है विर्द करता हूँ तेरा कसरत से होश शाफ़ी गँवा न बैठें हम यूँ न देखो हमें शरारत से