तो क्या राब्ता फिर ख़ुदा का बशर से तअ'ल्लुक़ नहीं जब दुआ का असर से जो पूछा हवा से क्यूँ महकी हुई हो कहा उस ने आई हूँ हो कर उधर से रह-ए-इश्क़ दुश्वार है किस क़दर ये कभी पूछ देखो तो मुझ दर-ब-दर से यूँ महव-ए-सफ़र हूँ तिरी जुस्तुजू में नज़र मेरी आगे है शम्स-ओ-क़मर से रहा बे-ख़बर अहल-ए-ग़ुर्बत के ग़म से सो ख़ुद गिर रहा हूँ मैं अपनी नज़र से कि माँ ख़्वाब में माथा सहला रही थी डरूँ क्या मैं अब बद-दुआ' बद-नज़र से