तोड़ दी सारे जहाँ से दोस्ती अच्छा किया और ख़ुद से भी कोई ख़्वाहिश न की अच्छा किया इक क़सम जो रोक सकती थी हमारी रुख़्सती ख़ैर तुम ने वो क़सम हम को न दी अच्छा किया लौटता तो देखता कुछ और पैरों के निशान पर न लौटा मैं कभी उस की गली अच्छा किया लोगों का बरताव तो था ही बहुत बेकार पर ख़ुद से मैं ने कौन सा ख़ुद भी कभी अच्छा किया अब तो झूटे मुँह भी तुम कहते नहीं हो प्यार है तुम ने आख़िर छोड़ ही दी दिल-लगी अच्छा किया