तोड़ना थीं तुम को क़स्में खाईं क्यों दिल पे अब तक ग़म की है परछाईं क्यों मेरे ख़्वाबों से भी वो लड़ने लगा पूछता है नींद में मुस्काईं क्यों जब हवा के संग उड़ना था उन्हें आसमाँ पर बदलियाँ फिर छाईं क्यों इक तरह की सोच रखते हैं ये सब दूसरे की बात में तुम आईं क्यों सुब्ह-दम दिल को लगाया दाव पर ढल गई अब शाम तो पछताईं क्यों