तोहमत-ए-इश्क़ जब उठा ली है फिर क्यूँ इंसाफ़ का सवाली है आज मैं ख़ुद से बहस करती रही और अब मेरा ज़ेहन ख़ाली है तेरा कोई न था मिसालिया यार बेवफ़ाई भी तो मिसाली है हाफ़िज़ा मैं ने आज जाने दिया इक तिरी याद ही बचा ली है हम हैं इक्कीसवीं सदी के लोग हम ने ख़ुद में जगह बना ली है 'बुशरा' ख़ुद ही दुखाया दिल अपना अपने ही दिल से फिर दुआ ली है