तोलता क्या मुझ को कोई जौहरी मीज़ान में मैं था मेरा और पड़ा था कोएले की कान में तुम से तो होता नहीं है ए'तिराफ़-ए-फ़न मिरा चंद जुमले मैं ही कहता हूँ तुम्हारी शान मैं बरसर-ए-पैकार उस को देख कर सब शाद थे जा लगा साहिल से वो तिनका मगर तूफ़ान में सज रही हैं फिर सियासी मंडियाँ चारों तरफ़ देखना तब्दील होगा शहर क़ब्रिस्तान में इश्क़ में सहरा-नवर्दी रास क्या आती मुझे वो था कोई और जो फिरता था रेगिस्तान में 'फ़ैज़' ये मुझ को यक़ीं है साज़िशों के बावजूद फूलती फलती रहेगी उर्दू हिन्दोस्तान में