टूट कर अहद-ए-तमन्ना की तरह मो'तबर हम रहे फ़र्दा की तरह शौक़-ए-मंज़िल तो बहुत है लेकिन चलते हैं नक़्श-ए-कफ़-ए-पा की तरह जा मिलेंगे कभी गुलज़ारों से फैलते जाएँगे सहरा की तरह देख कर हाल-ए-परेशाँ अपना हम भी हँस लेते हैं दुनिया की तरह कभी पायाब कभी तूफ़ानी हम भी हैं दश्त के दरिया की तरह महफ़िल-ए-नाज़ में रहिए लेकिन देखिए चश्म-ए-तमाशा की तरह अपने दुश्मन से हूँ वाक़िफ़ 'ताबिश' किसी देरीना शनासा की तरह