तू आया तो द्वार भिड़े थे दीप बुझा था आँगन का सुध बिसराने वाले मुझ को होश कहाँ था तन मन का जाने किन ज़ुल्फ़ों की घटाएँ छाई हैं मेरी नज़रों में रोते रोते भीग चला इस साल भी आँचल सावन का थोड़ी देर में थक जाएँगे नील-कमल सी रेन के पाँव थोड़ी देर में थम जाएगा राग नदी के झाँझन का फिर भी मेरी बाँहों की ख़ुशबू हर डाल पे लचकेगी हर तारा हीरा सा लगेगा मुझ को मेरे कंगन का तुम आओ तो घर के सारे दीप जला दूँ लेकिन आज मेरा जलता दिल ही अकेला दीप है मेरे आँगन का