तू अगर अब्र है मैं अब्र में पानी की तरह मैं तिरे साथ हूँ लफ़्ज़ों में मआनी की तरह नफ़्सी-नफ़्सी का ये आलम है कि आते जाते तुम मिले भी तो क़यामत की निशानी की तरह यूँ ही इक रोज़ गुज़र जाऊँगा राहों से तिरी मैं भी बहती हुई नदियों की रवानी की तरह देख कर तुझ को कलेजे में कसक उठती है धज तिरी है मिरी आशुफ़्ता-बयानी की तरह ना-मुरादी में तू ऐ दश्त अकेला ही नहीं मैं भी प्यासा हूँ तिरी तिश्ना-दहानी की तरह आज सुन लो मिरी बातें कि अभी ज़िंदा हूँ कल सुना जाऊँगा महफ़िल में कहानी की तरह