तू अगर ख़ाक तक नहीं आता मैं तिरे चाक तक नहीं आता चश्म-ए-नमनाक तक नहीं आता जो भी इदराक तक नहीं आता ज़हर तिरयाक तक नहीं आता गर ये ख़ुराक तक नहीं आता अब भी कीचड़ किसी के लहजे का मेरी पोशाक तक नहीं आता जो ग़ुबार-ए-सफ़र है रस्तों का बढ़ के अफ़्लाक तक नहीं आता 'ग़ालिब'-ओ-'मीर' पढ़ रहा हूँ मैं सो मैं टिकटाक तक नहीं आता