तू अपने हुस्न की आराइशों में गुम हो जा मुझे न देख मिरे साथ सोगवार न हो तिरी नज़र की ये आवारगी तुझे मा'लूम ख़ुदा करे कि कभी मुझ पे आश्कार न हो ये मरहला भी मिरी वहशतों में बाक़ी है कि दिल के दर्द में तेरा कोई शुमार न हो कभी तो हो कि करे तू भी प्यार के वा'दे कभी तो हो कि मुझे तेरा ए'तिबार न हो ये सोच कर तिरे दामन से हाथ खींच लिया कहीं ये दस्त-ए-वफ़ा तुझ को नागवार न हो न जाने क्यूँ इसी तशवीश में गुज़ारी उम्र कि ज़िंदगी किसी दस्त-ए-करम पे बार न हो