तू अपनी ज़ात के ज़िंदाँ से गर रिहाई दे तो मुझ को फिर मिरे हम-ज़ाद कुछ दिखाई दे बस एक घर हो ख़ुदाई में काएनात मिरी मिरे ख़ुदा मुझे इतनी बड़ी ख़ुदाई दे मैं उस को भूलना चाहूँ तो गूँज की सूरत वो मुझ को रूह की पाताल में दिखाई दे बुझा चुका है ज़माना चराग़ सब लेकिन ये मेरा इश्क़ कि हर रास्ता दिखाई दे हमारे शहर के सौदागरों की महफ़िल में वो एक शख़्स कि सब से अलग दिखाई दे उसे ग़ुरूर अता है कोई तो अब आए जो उस के दस्त में भी कासा-ए-गदाई दे पलट भी सकती हूँ 'ईमाँ' फ़ना की राहों से अगर कोई मुझे उस नाम की दहाई दे