तू बेवफ़ा ही सही तुझ से प्यार आज भी है तिरे लिए ये दिल-ओ-जाँ निसार आज भी है मैं जानता हूँ न आएगा तू पलट के कभी मगर मुझे तो तिरा इंतिज़ार आज भी है तू लाख ग़ैर सही आज-कल तू था मेरा दिल-ओ-जिगर पे तिरा इख़्तियार आज भी है तिरे बग़ैर भी दुनिया बहुत हसीं है मगर तिरे फ़िराक़ में दिल बे-क़रार आज भी है ख़ुशी है मुझ को तुझे मिल गई तिरी मंज़िल ख़ुशी से आँख मिरी अश्क-बार आज भी है न भर सकेगा कभी उस को वक़्त का मरहम तिरे करम से मिरा दिल फ़िगार आज भी है मैं तेरे बाग़ का बर्ग-ए-ख़िज़ाँ-रसीदा हूँ तू वो कली है कि जिस पर बहार आज भी है बिछड़ के तुझ से जिए जा रहा है क्यूँ 'आरिफ़' जिगर में ये ख़लिश-ए-नोक-ए-ख़ार आज भी है