तू चाहिए न तेरी वफ़ा चाहिए मुझे कुछ भी न तेरे ग़म के सिवा चाहिए मुझे मरने से पहले शक्ल ही इक बार देख लूँ ऐ मौत ज़िंदगी का पता चाहिए मुझे या रब मुआ'फ़ कर के न दे कर्ब-ए-इंफ़िआल मैं ने ख़ताएँ की हैं सज़ा चाहिए मुझे ख़ामोशी-ए-हयात से उकता गया हूँ मैं अब चाहे दिल ही टूटे सदा चाहिए मुझे उन मस्त मस्त आँखों में आँसू अरे ग़ज़ब ये इश्क़ है तो क़हर-ए-ख़ुदा चाहिए मुझे नासेह नसीहतों का ज़माना गुज़र गया अब प्यारे सिर्फ़ तेरी दुआ चाहिए मुझे हर दर्द को दवा की ज़रूरत है ऐ 'ख़ुमार' जो दर्द ख़ुद हो अपनी दवा चाहिए मुझे