तू जहाँ में चार-दिन मेहमान है इस के आगे और ही सामान है आदमी इक ख़ाक का पुतला है बस जिस्म में रंगत है जब तक जान है काला-गोरा ऊँचा-नीचा जो भी हो आदमी वो है कि जो इंसान है गर जहन्नुम की हक़ीक़त जान लो राह जन्नत की बहुत आसान है कुछ तिरे आ'माल ही अच्छे न थे अपनी बर्बादी पे क्यूँ हैरान है कुछ नहीं सारे-जहाँ की दौलतें आदमी के दिल में गर ईमान है