तू ख़ुद को देख ले कितना दराज़-क़ामत है तिरा फ़लक तो मिरे चाँद की बदौलत है किसी भी हाल में हम ख़र्च कर नहीं सकते हमारा दर्द तिरी दी हुई अमानत है मिरा वजूद अभी बर्फ़ की मिसाल नहीं बची हुई अभी इस राख में तमाज़त है जवाब ईंट का देना पड़ेगा पत्थर से यही है रस्म यहाँ की यही रिवायत है अजीब चार-तरफ़ है फ़ज़ा में ख़ामोशी ये क्या मक़ाम है किस क़हर की अलामत है नहीं चराग़ तो जुगनू का क़ाफ़िला भेजे बहुत सियाह है रस्ता बहुत ज़रूरत है 'निसार' तेज़ क़दम है बहुत ये दुनिया तो कि अब पड़ाव भी करना तुझे क़यामत है