तू न आया तिरी यादों की हवा तो आई दिल के तपते हुए सहरा पे घटा तो आई मैं तो समझा था कि अब कोई न अपना होगा तेरे कूचे से मगर हो के सबा तो आई मेरे मरने की सही जाँ से गुज़रने की सही मेरे हक़ में तेरे होंटों पे दुआ तो आई दिल-दही का जो सलीक़ा नहीं आया न सही आप को दिल के दुखाने की अदा तो आई हो गया आप-ही-आप आज मुदावा अपना गर मसीहा नहीं आया तो क़ज़ा तो आई मुझ को शिकवा नहीं अब क़ासिम-ए-क़िस्मत से 'शकेब' कुछ न आया मिरे हिस्से में वफ़ा तो आई