तू न आएगा मुझे जब से यक़ीं आ गया है आसमाँ जैसे मिरा ज़ेर-ए-ज़मीं आ गया है जिस के मिलने को मसाफ़त थी कई बरसों की एक ही पल में वो हम-ज़ाद यहीं आ गया है निखरा निखरा सा है हर शेर ग़ज़ल का मेरी सोच में जब से तसव्वुर वो हसीं आ गया है हर तरफ़ तंज़ के नश्तर हैं हमारी जानिब किस के हाथों में मिरा दीन-ए-मुबीं आ गया है आ गया काम मिरे रोज़ का रोना धोना जो न आता था कभी मेरे क़रीं आ गया है गर्दिश-ए-वक़्त टली एक ही लम्हे को यूँही रुख़ पे ज़ुल्फ़ों को बिखेरे वो हसीं आ गया है सेहन-ए-गुलशन में सरासीमगी कैसी है 'नबील' अहल-ए-गुलशन में कोई दश्त-नशीं आ गया है