तू नहीं है तो मिरी शाम अकेली चुप है याद में दिल की ये वीरान हवेली चुप है हर तरफ़ थी बड़ी महकार मेरे आँगन में अपने फूलों के लिए मेरी चमेली चुप है बोलते हाथ भी ख़ामोश हुए बैठे हैं इक मुक़द्दर की तरह मेरी हथेली चुप है भेद खुलता ही नहीं कैसी उदासी छाई बूझ सकता नहीं कोई वो पहेली चुप है इतना हँसती थी कि आँसू निकल आते थे 'सबा' ये नई बात बहारों की सहेली चुप है