तू ने कभी भी आँसू बहा कर नहीं देखा नमनाक निगाहों से मना कर नहीं देखा ग़ैरों ने कभी हाथ मिला कर नहीं देखा अपनों ने भी सीने से लगा कर नहीं देखा नज़रों में ख़यालों में समाया था बहुत वो हर चंद उसे दिल से लगा कर नहीं देखा मैं जानता था रहती न हस्ती-ए-समुंदर मैं ने दो किनारों को मिला कर नहीं देखा बिछड़ा भी तो इस नाज़ से अंदाज़ से बिछड़ा फिर उस ने कभी लौट के आ कर नहीं देखा उस ने भी कभी पुर्सिश-ए-ग़म की नहीं 'फ़ैसल' मैं ने भी कभी दर्द सुना कर नहीं देखा