तू तिश्नगी की अज़िय्यत कभी फ़ुरात से पूछ अँधेरी रात की हसरत अँधेरी रात से पूछ गुज़र रही है जो दिल पर वही हक़ीक़त है ग़म-ए-जहाँ का फ़साना ग़म-ए-हयात से पूछ मैं अपने आप में बैठा हूँ बे-ख़बर तो नहीं नहीं है कोई तअल्लुक़ तो अपनी ज़ात से पूछ दुखी है शहर के लोगों से बद-मिज़ाज बहुत जो पूछना है मोहब्बत से एहतियात से पूछ तू अपनी ज़ात के अंदर भी झाँक ले 'साहिल' ज़मीं का भेद किसी रोज़ काएनात से पूछ