तूफ़ाँ बदल गए कभी धारे बदल गए मौजों के साथ साथ किनारे बदल गए ग़म-हा-ए-ज़िंदगी के सहारे बदल गए मस्ती भरी नज़र के इशारे बदल गए तारी फ़ज़ा-ए-कैफ़ पे बे-कैफ़ियाँ सी थीं उठी जो वो नज़र तो नज़ारे बदल गए इस वारदात-ए-ख़ास का किस से करूँ गिला बदले हैं जब से आप सितारे बदल गए ठंडी हुई न अश्क-ए-रवाँ से भी ग़म की आग आँसू बदल गए कि शरारे बदल गए सुनते ही 'रौशनी' की ग़ज़ल लोग कह उठे ग़म-हा-ए-ज़िंदगी के नज़ारे बदल गए