तुझ बेवफ़ा की आह कोई चाह क्या करे दिल तुझ को दे के तू ही बता आह क्या करे जिस दिल-जले की तुझ से लगे शम्अ-साँ लगन सर से वो गुज़रे और तू वल्लाह क्या करे ज़ारी फ़ुग़ाँ ओ नाला सभी बे-असर हैं आह इस संग-दिल के दिल में कोई राह क्या करे इस माह-ए-कूचा-गर्द के तईं ढूँढता हुआ हर शब गली गली न फिरे आह क्या करे याक़ूब की तरह तो बहुत रोए देखिए ऐ यूसुफ़-ए-ज़माना तिरी चाह क्या करे जाते हैं सू-ए-दैर रह-ए-काबा छोड़ कर हक़ में हमारे देखिए अल्लाह क्या करे कोई ढूँढता कताँ के तईं यारो पर है ग़म मिलता कहीं नहीं दिल-ए-आगाह क्या करे की दिल ने दिल-बरान-ए-जहाँ की बहुत तलाश कोई दिल-रुबा मिला है न दिल-ख़्वाह क्या करे इस कू-ए-ज़ुल्फ़ में ऐ 'जहाँदार' जा फँसा दिल किस तरह से गुम न करे राह क्या करे