तुझ को आती है दिलासे की नहीं बात कोई किस तरह तुझ से रक्खे जान मुलाक़ात कोई लग चले तुझ से वो खानी हो जिसे लात कोई हाथ किस तरह लगा दे तुझे हैहात कोई डर से मैं चुप हूँ तिरे वर्ना भरी मज्लिस में बात करता है कोई तुझ से इशारात कोई मिल गए राह में कल वो तो कहा 'रंगीं' ने किस तरह तुम से करे अब बसर-औक़ात कोई कुछ तो इंसाफ़ भला कीजिए दिल में अपने तुम ने मानी भी कभी मेरी अजी बात कोई