तुझ को आवाज़ से समझूँ कि बयाँ से देखूँ मो'तबर क्या है बता तुझ को कहाँ से देखूँ आब-दीदा हूँ मैं ख़ुद ज़ख़्म-ए-जिगर से अपने तेरी आँखों में छुपा दर्द कहाँ से देखूँ इस खुली आँख पे खुलते नहीं असरार तिरे तू छुपा है तो तुझे चश्म-ए-निहाँ से देखूँ मैं ने चाहा था सनम बन के तू आँखों में रहे तू ने चाहा मैं तुझे चश्म-ए-बुताँ से देखूँ हर तरफ़ तीर बरसते हैं निशाना मैं हूँ लौट आती है नज़र ख़ुद पे जहाँ से देखूँ इस तरह दिल में उतर जा न रहे कुछ बाक़ी तू ही तू हो मेरी नज़रों में जहाँ से देखूँ