तुझ से अब दर्द का रिश्ता भी नहीं चाहिए है जा मुझे तेरी तमन्ना भी नहीं चाहिए है देख कुछ भी न सकूँ मैं किसी साए के सिवा रौशनी इतनी ज़ियादा भी नहीं चाहिए है इक नज़र तिश्ना-ए-नज़्ज़ारा ही रख लेनी है इक तमाशे में तमाशा भी नहीं चाहिए है ख़ैर-ओ-शर दोनों मुझे ज़ख़्म दिए जाते हैं ये बुरा क्या मुझे अच्छा भी नहीं चाहिए है अब ज़रा चाहिए तन्हाई में यकसूई मुझे अब कोई चाहने वाला भी नहीं चाहिए है मैं ने हलकान किया जिस की तलब में ख़ुद को सच तो ये है कि वो दुनिया भी नहीं चाहिए है रोक मत मुझ को फ़रस्तादा-ए-तुग़्यानी हूँ उस सफ़र में हूँ कि रस्ता भी नहीं चाहिए है जीना मुश्किल तो बहुत है तिरी इस दुनिया में लेकिन इस ख़्वाब को मरना भी नहीं चाहिए है