तुझ से तसव्वुरात में ऐ जान-ए-आरज़ू बाँधे हैं हम ने सैंकड़ों पैमान-ए-आरज़ू ऐ रश्क-ए-नौ-बहार तिरे इंतिज़ार में क्या क्या खिलाए हम ने गुलिस्तान-ए-आरज़ू फिर दिल में दाग़-हा-ए-तमन्ना हैं ज़ौ-फ़िशाँ फिर कर रहा हूँ जश्न-ए-चराग़ान-ए-आरज़ू देखे कोई ये रब्त कि मरने के बा'द भी छूटा न दस्त-ए-शौक़ से दामान-ए-आरज़ू अब देखिए गुज़रती है क्या उस की जान पर इक दिल है और सैंकड़ों तूफ़ान-ए-आरज़ू तेरा ख़याल तेरे नज़ारे तिरा जमाल कितने चराग़ हैं तह-दामान-ए-आरज़ू समझो न हम को बे-सर-ओ-सामाँ कि हम 'जलीस' रखते हैं दिल में गंज-ए-फ़रावान-ए-आरज़ू