तुझ से वाबस्ता ज़िंदगी मुझ में एक हारी हुई ख़ुदी मुझ में तेरी आवाज़ सुन के जाग उठी एक रूठी हुई ख़ुशी मुझ में शोख़ चंचल है शब की तन्हाई तू ने भर दी है रौशनी मुझ में रूह तुझ से कलाम करती है साँस लेती है दिलकशी मुझ में फ़ासले सारे मिटते जाते हैं रक़्स करती है बे-ख़ुदी मुझ में रात क्या तुझ को ख़्वाब में देखा सुब्ह-ए-ताबीर हँस पड़ी मुझ में