तुझे अपना बनाना चाहता हूँ मैं क़िस्मत आज़माना चाहता हूँ तुझे दिल में बिठाना चाहता हूँ नई दुनिया बसाना चाहता हूँ ग़म-ए-दौराँ से गर मिल जाए फ़ुर्सत मैं हँसना मुस्कुराना चाहता हूँ बहुत दा'वा है तुझ को दोस्ती का तुझे भी आज़माना चाहता हूँ बहुत तड़पा रही हैं उस की यादें मैं उस को भूल जाना चाहता हूँ मिरे रब की हिफ़ाज़त में है कश्ती ये तूफ़ाँ को बताना चाहता हूँ सबक़ उन्स-ओ-मोहब्बत का 'ज़की' मैं ज़माने को पढ़ाना चाहता हूँ